________________
३३६
श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला (१) पृथ्वी शौच-मिट्टी से घृणित मल और गन्ध का दूर करना
पृथ्वी शौच है। (२) जलः शौच-पानी से धोकर मलीनता दूर करना जल
शौच है। (३) तेजः शौच-अनि एवं अग्नि के विकार स्वरूप भस्म से
शुद्धि करना तेजः शौच है। (४) मन्त्र शौच--मन्त्र से होने वाली शुद्धि मन्त्र शौच है । (५) ब्रम शौच--ब्रह्मवर्यादि कुरा न अनुरान, जो आत्मा के
काम कषायादि आभ्यन्तर मल की शुद्धि करते हैं, ब्रह्मशौच कहलाते हैं । मत्य, नप, इन्द्रिय निग्रह एवं सर्व प्राणियों पर दया भाव रूप शौच का भी इसी में समावेश होता है।
इनमें पहले के चार शौच द्रव्य शौच हैं और ब्रह्म शौच भाव शौच है।
(ठाणग ५ उद्देशा३ सूत्र ४४६) ३२८--पाँच प्रकार का प्रत्याख्यान:प्रत्याख्यान (पच्चक्खाण) पांच प्रकार से शुद्ध होता है। शुद्धि
के भेद से प्रत्याख्यान भी पाँच प्रकार का है(१) श्रद्धान शुद्ध । (२) विनय शुद्ध । (३) अनुभाषण शुद्ध। (४) अनुपालना शुद्ध ।
(५) भावशुद्ध । (१) श्रद्धानशुद्धः-जिनकल्प, स्थविर कल्प एवं श्रावक धर्म
विषयक, तथा सुभिक्ष, दुर्भिक्ष, पहली, चौथी पहर एवं चरम काल में सर्वज्ञ भगवान् ने जो प्रत्याख्यान कहे हैं उन पर श्रद्धा रखना श्रद्धान शुद्ध प्रत्याख्यान है।