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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह काम भोग आदि का स्मरण न करना लिखा है । क्योंकि पूर्व रति एवं क्रीड़ा का स्मरण करने से कामाग्नि दीप्त
होती है, जो कि ब्रह्मचर्य के लिए घातक है। ३२१-परिग्रह विरमण रूप पांचवें महाव्रत की पाँच भावनाएं:
पाँचों इन्द्रियों के विषय शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श के इन्द्रिय गोचर होने पर मनोज्ञ पर मूर्छा-गृद्धि भाव न लावे एवं अमनोज्ञ पर द्वेष न करे । यों तो विषयों के गोचर होने पर इन्द्रियां उन्हें भोगती ही हैं । परन्तु माधु को मनोज्ञ एवं अमनोज्ञ विषयों पर राग द्वप न करना चाहिए । पांचवं व्रत में मूच्छो रूप भाव परिग्रह का त्याग किया जाता है । इस लिए मूळ, ममत्व करने से व्रत खण्डित हो जाता है।
( बोल नम्बर ३१५ से ३२१ तक के लिए प्रमाण)
(हरिभद्रीय आवश्यक प्रतिक्रमणाध्ययन पृष्ठ ६५८) (प्रवचन सारोद्धार गाथा ६३६ से ६४० पृष्ठ ११७)
(समवायांग २५वां समवाय) (अाचारांग सूत्र श्रुतस्कन्ध २ चूला ३)
(धर्म संग्रह अधिकार ३ पृष्ठ १२५) ३२२-वेदिका प्रतिलेखना के पांच भेदः
छः प्रमाद प्रतिलेखना में छठी वेदिका प्रतिलेखना है । वह पांच प्रकार की है:(१) ऊर्ध्व वेदिका (२) अधोवेदिका । (३) तिर्यग्वेदिका (४) द्विधा वेदिका ।
(५) एकतो वेदिका।