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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला अपने व्रत को मलीन करता है । स्वयं खाज (खुजली) उत्पन्न कर उसे खुजलाने में सुख अनुभव करना कोई बुद्धिमत्ता नहीं है । कहा भी है:"मीठी खाज खुजावतां पीछे दुःख की खान" ।
(उपासक दशांग प्रथम अध्ययन
अभयदेव सूरी को टीका के आधार पर) ३०५-परिग्रह परिमाण व्रत के पांच अतिचार--
(१) क्षेत्र वास्तु प्रमाणातिक्रम । (२) हिरण्य मुवर्ण प्रमाणातिक्रम । (३) धन धान्य प्रमाणातिक्रम । (४) द्विपद चतुष्पद प्रमाणानिक्रम ।
(५) कुष्य प्रमाणातिक्रम। (१) क्षेत्रवास्तु प्रमाणातिक्रम-धान्योत्पति की जमीन को क्षेत्र
(खेन) कहते हैं। वह दो प्रकार का है(१) सेतु । (२) केतु ।
अरघट्टादि जल से जो खेत सींचा जाता है वह सेतु क्षेत्र है। वर्षा का पानी गिरने पर जिसमें धान्य पैदा होता है वह केतु क्षेत्र कहलाता है। घर आदि को वास्तु कहते हैं । भूमिगृह (भोयरा),भूमि गृह पर बना हुआ घर या प्रासाद,एवं भूमि के ऊपर बना हुआ घर या प्रसाद वास्तु है। इस प्रकार वास्तु के तीन भेद हैं । उक्त क्षेत्र, वास्तु की जो मर्यादा की है उसका उल्लंघन करना क्षेत्र वास्तु प्रमाणातिक्रम अतिचार है। अनुपयोग या अतिक्रम आदि की अपेक्षा से यह अतिचार है । जानबूझ कर मर्यादा का उल्लंघन करना अनाचार है।