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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (२) निरक्ष अर्थ बन्ध।
द्विपद,चतुष्पद को इस प्रकार से बांधना कि आग आदि लगने पर आमानी से खोले जा सकें, मापेक्ष बन्ध कहलाता है। जैसे चतुष्पद गाय, भैंस आदि और द्विपद दासी, चोर या दुर्विनीन पुत्र को उनकी रक्षा या भलाई का ख्याल कर या शिक्षा के लिये करुणा पूर्वक शरीर की हानि और कष्ट को बचाने हुए बाँधना मापेक्ष बन्ध है । लापरवाही के साथ निर्दयता पूर्वक क्रोधवश गाढ़ा बन्धन बांध देना निरपेक्ष
अर्थवन्ध है। श्रावक के लिये सापेक्ष अर्थवन्ध अतिचार रूप नहीं है । अनर्थवन्ध एवं निरपेक्ष अर्थबन्ध अतिचार
रूप हैं और श्रावक के लिए त्याज्य हैं। (२) वधः-कोड़े आदि से मारना वध है। इसके भी बन्ध की
तरह अर्थ, अनर्थ एवं मापेक्ष, निरपेक्ष प्रकार से दो दो भेद हैं ।अनर्थ एवं निरपेक्ष वध अनिचार में शामिल हैं। शिक्षा के हेतु दाम, दामी, पुत्र आदि की या नुकसान करते हुए चतुष्पद को आवश्यकता होने पर दयापूर्वक उनके मर्म स्थानों पर चोट न लगाते हुए मारना सापेक्ष अर्थबन्ध
है । यह श्रावक के लिए अतिचार रूप नही है। (३) अविच्छेद--शस्त्र से अङ्गोपाङ्ग का छेदन करना छविच्छेद
है। विच्छेद भी बन्य और वध, की तरह सप्रयोजन तथा निष्प्रयोजन और सापेक्ष तथा निरपेक्ष होता है । निष्प्रयोजन तथा प्रयोजन होने पर भी निर्दयता पूर्वक हाथ, पैर, कान, नाक आदि का छेदन करना अतिचार रूप है और वह श्रावक के लिए त्याज्य है । किन्तु प्रयोजन होने पर दया पूर्वक