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श्री सेठिया जैन प्रन्धमाना वर्द्धन्ते पञ्च कौन्तेय ! सेव्यमानानि नित्यशः । आलस्यं मैथुनं निद्रा राधा क्रोधश्च पञ्चमः ॥१॥
हे अर्जुन ! आलस्य, मैथुन, निद्रा क्षुधा और क्रोध ये पांचों प्रमाद सेवन किये जाने से सदा बढ़ते रहते हैं।
इस लिए निद्रा प्रमाद का त्याग करना चाहिए । समय पर स्वास्थ्य के लिए आवश्यक निद्रा के मिया अधिक
निद्रा न लेनी चाहिये और अममय में नहीं सोना चाहिये । (५) विकथा प्रमादः-प्रमादी माधु गग द्वेष वश होकर जो
वचन कहता है वह विकथा है । स्त्री आदि के विषय की कथा करना भी विकथा है। नोट-विकथा का विशेष वर्णन १४८ वें बोल में दिया गया है।
(ठाणांग ६ सूत्र ५०० ) (धर्म संग्रह अधिकार २ पृष्ठ ८१)
(पञ्चाशक प्रथम गाथा २३) २६२-क्रिया की व्याख्या और उसके भेदःकर्म-बन्ध की कारण चेष्टा को क्रिया कहते हैं ।
अथवाःदुष्ट व्यापार विशेष को क्रिया कहते हैं।
अथवाःकर्म बन्ध के कारण रूप कायिकी आदि पांच पांच करके पच्चीस क्रियाएं हैं। वे जैनागम में क्रिया शब्द से कही गई हैं।