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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला से विजातीय प्रायश्चित्त का आरोप करना आरोपणा प्रायश्चित्त है । जैसे एक अपराध के लिये पाँच दिन का प्रायश्चित्त आया। फिर उसी के सेवन करने पर दश दिन का फिर सेवन करने पर १५ दिन का। इस प्रकार ६ मास तक लगातार प्रायश्चित्त देना। छः मास से अधिक तप
का प्रायश्चित्त नहीं दिया जाता । (४) परिकुञ्चना प्रायश्चित्त-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा
अपराध को छिपाना या उसे दूसरा रूप देना परिकुञ्चना है। इसका प्रायश्चित्त परिकुचना प्रायश्चित्त कहलाता है।
(ठाणाँग ४ सूत्र २६३) २४६-चार भावाना
(१) मैत्री भावना (२) प्रमोद भावना
(३) करुणा भावना (४) माध्यस्थ भावना । (१) मैत्री भावना:-विश्व के समस्त प्राणियों के साथ मित्र
जैसा व्यवहार करना, वैर भाव का सर्वथा त्याग करना मैत्री भावना है । वैर भाव दुःख, चिन्ता और भय का स्थान है। यह राग द्वेष को बढ़ाता है एवं चित को विक्षिप्त रखता है। उसके विपरीत मैत्री-भाव चिन्ता एवं भय को मिटा कर अपूर्व शान्ति और सुख का देने वाला है। मैत्री भाव से सदा मन स्वस्थ एवं प्रसन्न रहता है।
जगत् के सभी प्राणियों के साथ हमारा माता-पिता, भाई, पुत्र, स्त्री, आदि का सम्बन्ध रह चुका है। उसे स्मरण करके मैत्री भाव को पुष्ट करना चाहिए । अपकारियों