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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला द्वेष एवं मोह से आकुल जीव के यह चारों प्रकार का रौद्रध्यान होता है। यह ध्यान संसार बढ़ाने वाला एवं नरक गति में ले जाने वाला है ।
(ठाणांग ४ सूत्र २४७) २१६-रौद्रध्यान के चार लक्षण:
(१) अोमन्न दोष (२) बहुदोष, ( बहुलदोष ),
(३) अज्ञान दोष ( नानादोष ) (४) आमरणान्त दोष । (१) ओसन्न दोषः-रौद्रध्यानी हिंसादि से निवृत्त न होने से
बहुलता पूर्वक हिमादि में से किमी एक में प्रवृत्ति करता
है । यह अोमन्न दोष है। (२) बहुल दोषः-रौद्रध्यानी मभी हिंसादि दोषों में प्रवृत्ति करता
है । यह बहुल दोष है। (३) अज्ञान दोषः-अज्ञान से कुशास्त्र के संस्कार से नरकादि के
कारण अधर्म स्वरूप हिंसादि में धर्म बुद्धि से उन्नति के लिए प्रवृत्ति करना अज्ञान दोष है ।
अथवाःनानादोष-विविध हिंसादि के उपायों में अनेक बार प्रवृत्ति
करना नानादोष है। (४) आमरणान्त दोषः-मरण पर्यन्त क्रूर हिंसादि कार्यों में अनु
ताप (पछतावा) न होना, एवं हिंसादि में प्रवृत्ति करते रहना आमरणान्त दोष है । जैसे काल सौकरिक कसाई ।
(ठाणांग ४ सूत्र २४७) (भगवती शतक २५ उद्देशा७)