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श्रा सठिया जैन ग्रन्थमाला राग द्वेष और मोह से युक्त प्राणी का यह चार प्रकार का आर्त ध्यान मंमार को बढ़ाने वाला और सामान्यतः तिर्यञ्च गति में ले जाने वाला है।
(ठाणांग ४ सूत्र २४७)
(आवश्यक अध्ययन ४) २१७--आर्तध्यान के चार लिङ्गः
(१) आक्रन्दन (२) शोचन । (३) परिवेदना (४) नेपनता । ये चार आर्तध्यान के चिह्न हैं। ऊचे स्वर से रोना और चिल्लाना आक्रन्दन है । आंखों में आंसू लाकर दीनभाव धारण करना शोचन है।
बार बार क्लिष्ट भाषण करना, विलाप करना परिवेदना है। आंसू गिराना नेपनता है।
इष्ट वियोग, अनिष्ट मंयोग और वेदना के निमित से ये चार चिह्न प्रार्तध्यानी के होते हैं।
(आवश्यक अध्ययन ४) (ठारणांग ४ उद्देशा १ मूत्र २४७)
(भगवती शतक २५ उद्देशा ७) २१८--रौद्रध्यान के चार प्रकार:
(१) हिंसानुबन्धी (२) मृषानुबन्धी
(३) चौानुबन्धी (४) संरक्षणानुबन्धी हिंसानुबन्धीः-प्राणियों को चाबुक, लता आदि से मारना,कील
आदि से नाक वगैरह बींधना, रस्सी जंजीर आदि से बांधना, अग्नि में जलाना, डाम लगाना, तलवार आदि से