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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह कथ्य और गेय काव्य का गद्य और पद्य में ममावेश हो जाने पर भी कथा और गान धर्म की प्रधानत्ता होने से ये अलग गिनाए गए हैं।
(ठाणांग ४ सूत्र ३७६) २१३-चार शुभ और चार अशुभ गणः--
तीन अक्षर के समूह को गण कहते हैं । आदि मध्य और अन्त अक्षरों के गुरु लघु के विचार से गणों के घाट
नीचे लिखे सूत्र से आठ गण मरलता से याद किए जा मकते हैं।
“य मा ता रा ज भा न म ल ग म्" य (यगण) मा (मगण) ता (तगण) रा (रगण) ज (जगण) भा (भगण) न (नगण)
म (सगण) ये आठ गण हैं। 'ल' लघु के लिए और 'ग' गुरु के लिए है।
जिस गण को जानना हो, ऊपर के सूत्र में गण के अक्षर के माथ आगे के दो और अक्षर मिलाने से वह गण बन जायगा । जैसे यगण पहचानने के लिए 'य' के आगे के दो अक्षर और मिलाने से यमाता हुआ । इसमें 'य' लघु है, 'मा' और 'ता' गुरु हैं। अर्थात् आदि अक्षर के लघु और शेष दो अक्षरों के गुरु होने से यगण (Iss) होता है।