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श्री सठिया जैन ग्रन्थमाला' (७) वाक्य शुद्धिः
वचन शुद्धि की आवश्यकता, वाणी क्या चीज है ? वाणी के अतिव्यय से हानि, भाषा के व्यवहारिक प्रकार, उनमें से कौन कौन सी भाषाएं वर्ण्य हैं और किस लिये ? कैसी सत्य वाणी बोलनी चाहिए ? किसी का दिल न दुःखे
और व्यवहार भी चलता रहे तथा संयमी जीवन में बाधक
न हो ऐमी विवेक पूर्ण वाणी का उपयोग। (८) आचरण प्रणिधिः
सद् गुणों की सच्ची लगन किसे लगती है ? सदाचार मार्ग की कठिनता, साधक भिन्न २ कठिनताओं को किस प्रकार पार करे ? क्रोधादि आत्मरिपुत्रों को किस प्रकार जीता जाय ? मानसिक, वाचिक, तथा कायिक ब्रह्मचर्य की रक्षा । अभिमान कैसे दूर किया जाय ? ज्ञान का मदुपयोग । माधु को आदरणीय एवं त्याज्य क्रियाएं, माधु जीवन
की समस्याएं और उनका निराकरण ।' P. (8) विनय समाधिः- ।
' प्रथम उद्देशक-विनय की व्यापक व्याख्या, गुरुकुल में गुरुदेव
के प्रति श्रमण साधक सदा भक्ति भाव रखे । अविनीत साधक अपना पतन स्वयमेव किस तरह करता है ? गुरु को वय अथवा ज्ञान में छोटा जान कर उनी अविनय करने का भंयकर परिणाम । ज्ञानी साधक के लिये भी गुरुभक्ति की आवश्यकता, गुरुभक्त शिष्य का विकास विनीत साधक के विशिष्ट लक्षण ।