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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (३१) चरण विधिः
यह संसार पाठ सीखने की शाला है । प्रत्येक वस्तु में कुछ ग्रहण करने योग्य, कुछ त्यागने योग्य, और कुछ उपेक्षणीय गुण हुआ करते हैं । उनमें से यहाँ एक से लेकर तेतीस संख्या तक की वस्तुओं का वर्णन किया गया है।
उपयोग यही धर्म है। (३२) प्रमाद स्थान:
प्रमाद स्थानों का चिकित्सा पूर्ण वर्णन, व्याप्त दुःख से छूटने का एक मार्ग, तृष्णा, मोह और क्रोध का जन्म कहाँ से ? राग तथा द्वेष का मूल क्या है ? मन तथा
इन्द्रियों के असंयम के दुष्परिणाम, मुमुक्षु की कार्य दिशा । (३३) कर्म प्रकृति:
जन्म मरण के दुःखों का मूल कारण क्या है ? आठ कर्मों के नाम, भेद, उपभेद, तथा उनकी भिन्न भिन्न स्थिति एवं
परिणाम का संक्षिप्त वर्णन। (३४) लेश्या:
सूक्ष्म शरीर के भाव अथवा शुभाशुभ कर्मों के परिणाम, छः लेश्याओं के नाम, रंग, रस, गन्ध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, स्थान, स्थिति, गति, जघन्य उत्कृष्ट स्थिति आदि का विस्तृत वर्णन । किन किन दोषों एवं गुणों से असुन्दर एवं सुन्दर भाव पैदा होते हैं । स्थूल क्रिया से सूक्ष्म मन का सम्बन्ध, कलुषित अथवा अप्रसन्न मन का आत्मा पर