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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला लेने के लिए आज्ञा प्राप्त करते समय उनकी तात्त्विक चर्चा, पूर्व जन्मों में नीच गतियों में भोगे हुए दुःखों की वेदना का वर्णन, आदर्श त्याग, संयम स्वीकार कर सिद्ध गति को प्राप्त
करना। (२०) महा निर्ग्रन्थीयः
श्रेणिक महाराज और अनाथी मुनि का आश्चर्यकारक संयोग,अशरण भावना, अनाथता और सनाथता का विस्तृत वर्णन,कर्म का कर्ता तथा भोक्ता आत्मा ही है । इसकी प्रतीति, आत्मा ही अपना शत्रु और आत्मा ही अपना मित्र
है। सन्त के समागम से मगधपति को पैदा हुआ आनन्द । (२१) समुद्र पालीयः--
चम्पा नगरी में रहने वाले, भगवान् महावीर के शिष्य पालित श्रावक का चरित्र, उसके पुत्र समुद्रपाल को एक चोर की दशा देखते ही उत्पन्न हुआ वैराग्यभाव, उनकी अडिग
तपश्चर्या, त्याग का वर्णन । (२२) रथनेमीय:--
भगवान् अरिष्टनेमि का पूर्व जीवन, तरुण वय में ही योग संस्कार की जागृति, विवाह के लिए जाते हुए मार्ग में एक छोटा सा निमित्त मिलना । यानि दीन एवं मृक पशु पक्षियों से भरे हुए बाड़े को देख कर तथा ये बरातियों के भोजनार्थ मारे जावेंगे ऐसा सारथि से जान कर उन पर करुणा कर, उन्हें बन्धन से मुक्त करवाना, पश्चात् वैराग्य भाव का उत्पन्न होना संयम स्वीकार करना, स्त्रीरत्न राजमती का अभिनिष्क्रमण,