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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (१६) ब्रह्मचर्य समाधि के स्थान:
मन, वचन, काया से शुद्ध ब्रह्मचर्य किस तरह पाला जा सकता है ? उसके लिए १० हितकारी वचन । ब्रह्मचर्य की क्या आवश्यकता है ? ब्रह्मचर्य पालन का फल आदि
का विस्तृत वर्णन। (१७) पाप श्रमणीयः
पापी श्रमण किसे कहते हैं ? श्रमण जीवन को दूषित करने वाले सूक्ष्मातिसूक्ष्म दोषों का भी चिकित्सापूर्ण
वर्णन । (१८) संयतीयः
कम्पिला नगरी के राजा संयति का शिकार के लिए उद्यान में जाना, मृन पर बाण चलाना, एक छोटे से मौज मजा में पश्चात्ताप का होना, गर्दभाली मुनि के उपदेश का प्रभाव, संयति राजा का गृह त्याग, संयति तथा क्षत्रिय मुनि का समागम, जैन शासन की उत्तमता किरा में है ? शुद्ध अन्तःकरण से पूर्व-जन्म का स्मरण होना, चक्रवर्ती की अनुपम विभूति के धारक अनेक महापुरुषों का आत्मसिद्धि के लिए त्याग मार्ग का अनुसरण कर आत्म
कल्याण करना । उन सब की नामावली । (१६) मृगापुत्रीयः
सुग्रीव नगर के बलभद्र राजा के तरुण युवराज मृगापुत्र को एक मुनि के देखने से भोग विलासों से वैराग्यभाव का पैदा होना, पुत्र का कर्तव्य, माता पिता का वात्सल्य भाव, दीक्षा