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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
१६५ अति दुःखद परिणाम, मनुष्य जीवन का कर्तव्य,काम भोगों
की चंचलता। (E) कापिलिक:
कपिल मुनि के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, शुभ भावना के अंकुर के कारण पतन में से विकास, भिक्षुकों के लिए इनका सदुपदेश, सूक्ष्म अहिंसा का सुन्दर प्रतिपादन, जिन विद्याओं से मुनि का पतन हो उनका त्याग, लोभ
का परिणाम, तृष्णा का हूबहू चित्र, स्त्री संग का त्याग । (8) नमि प्रव्रज्याः
निमित्त मिलने से नमि राजा का अभिनिष्क्रमण, नमि राजा के निष्क्रमण से मिथिला नगरी में हाहाकार,नमि राजा के साथ इन्द्र का तात्विक प्रश्नोत्तर और उनका सुन्दर
समाधान । (१०) द्रुमपत्रक:
वृक्ष के पके हुए पत्र से मनुष्य जीवन की तुलना, जीवन की उत्क्रान्ति का क्रम, मनुष्य जीवन की दुर्लभता, भिन्न २ स्थानों में भिन्न २ आयु स्थिति का परिमाण, गौतम स्वामी को उद्देश कर भगवान् महावीर स्वामी का अप्रमत्त रहने का उपदेश, गौतम स्वामी पर उसका
प्रभाव, और उनको निर्वाण की प्राप्ति होना । (११) बहुश्रुतपूज्य:
ज्ञानी एवं अज्ञानी के लक्षण, सच्चे ज्ञानी की मनोदशा, ज्ञान का सुन्दर परिणाम, ज्ञानी की सर्वोच्च उपमा ।