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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
(२) क्रिया ही प्रधान है और ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं है । इस प्रकार क्रिया को प्रधान मानने वाले क्रियावादी हैं।
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(३) जीव अजीव आदि पदार्थों के अस्तित्व को एकान्त रूप से मानने वाले क्रियावादी हैं । क्रियावादी के १८० प्रकार हैं:
जीव, अजीव, आश्रव, बंध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा और मोक्ष, इन नव पदार्थों के स्व और पर से १८ भेद हुए । इन अठारह के नित्य, अनित्य रूप से ३६ भेद हुए ।
इन में के प्रत्येक के काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा की अपेक्षा पाँच पाँच भेद करने से १८२ भेद हुए । जैसे जीव, स्व रूप से काल की अपेक्षा नित्य है । जीव स्वरूप से काल की अपेक्षा अनित्य है । जीव पर रूप से काल की अपेक्षा नित्य है । जीव पर रूप से काल की अपेक्षा नित्य है । इस प्रकार काल की अपेक्षा चार भेद हैं । इसी प्रकार नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा की अपेक्षा जीव के चार चार भेद होंगे। इस तरह जीव दि नव तत्वों के प्रत्येक के बीस बीस भेद हुए और कुल १९८० भेद हुए ।
अक्रियावादी :- अक्रियावादी की भी अनेक व्याख्याएं हैं ।
यथाः
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(१) किसी भी अनवस्थित पदार्थ में क्रिया नहीं होती है । यदि पदार्थ में क्रिया होगी तो वह अनवस्थित न