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श्री जैन सिद्धान्त बोल मंग्रह
११६ अप्रत्याख्यानावरण-जिस कषाय के उदय से देश विरति रूप
अल्प (थोड़ा सा भी) प्रत्याख्यान नहीं होता उसे अप्रन्याख्यानावरण कषाय कहते हैं । इस कपाय से श्रावक धर्म की प्राप्ति नहीं होती । यह कपाय एक वर्ष तक बना रहता
है । और इससे तिर्यञ्च गति योग्य कर्मों का बन्ध होता है। प्रत्याख्यानावरणः-जिस कषाय के उदय से सर्व विरति रूप
प्रत्याख्यान रुक जाता है अर्थात् साधु धर्म की प्राप्ति नहीं होती। वह प्रत्याख्यानावरण कपाय है । यह कपाय चार माम तक बना रहता है । इस के उदय से मनुष्य गति योग्य
कर्मों का बन्ध होता है। संज्वलन:-जो कषाय परिपह तथा उपमर्ग के अाजान पर
यतियों को भी थोड़ा मा जलाता है। अर्थात् उन पर भी थोड़ा सा अमर दिखाता है । उसे मंज्वलन कषाय कहते हैं । यह कपाय सर्व विरति रूप माधु धर्म में बाधा नहीं पहुँचाता । किन्तु सब से ऊंचे यथाख्यात चारित्र में बाधा पहुँचाता है। यह कपाय एक पक्ष तक बना रहता है। और इससे देवगति योग्य कर्मों का बन्ध होता है। ___ऊपर जो कषायों की स्थिति एवं नरकादि गति दी गई है। वह बाहुल्यता की अपेक्षा से है । क्योंकि बाहुबलि मुनि को संज्वलन कषाय एक वर्ष तक रहा था । और प्रसन्नचन्द्र राजर्षि के अनन्तानुबन्धी कषाय अन्तर्मुहर्त तक ही रहा था। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी कषाय के रहते हुए