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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (४) बालभाव से विवेक के विना अज्ञान पूर्वक काया
क्लेश आदि तप करने वाला जीव देवायु के योग्य कर्म बाँधता है।
(ठाणाग ४ उद्देशा ४ सूत्र ३७३) १३६-देवताओं के चार भेदः(१) भवनपति (२) व्यन्तर (३) ज्योतिष (४) वैमानिक ।
(उत्तराध्ययन अध्ययन ३६ गाथा १०२) १३७-देवताओं की पहिचान के चार बोल:
(१) देवताओं की पुष्पमालाये नहीं कुम्हलातीं। (२) देवता के नेत्र निनिमेष होते हैं । अर्थात् उनके पलक
नहीं गिरते। (३) देवता का शरीर नीरज अर्थात् निर्मल होता है। (४) देवता भूमि से चार अंगुल ऊपर रहता है । वह भूमि का स्पर्श नहीं करता ।
(अभिधान राजेन्द्र कोप भाग ४ पृष्ठ ::०) १३८-तत्काल उत्पन्न देवता चार कारणों से इच्छा करने पर
भी मनुष्य लोक में नहीं आ सकता। (१) तत्काल उत्पन्न देवता दिव्य काम भोगों में अत्यधिक
मोहित और गृद्ध हो जाता है । इस लिए मनुष्य सम्बन्धी काम भोगों से उमका मोह छूट जाता है और ___ वह उनकी चाह नहीं करता । (२) वह देवता दिव्य काम भोगों में इतना मोहित और
गृद्ध होजाता है कि उसका मनुष्य सम्बन्धी प्रेम देवता सम्बन्धी प्रेम में परिणत हो जाता है।