________________
श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला करने पर भी वह पुरुष माता पिता के महान् उपकार से उऋण नहीं हो सकता । परन्तु यदि वह केवली प्ररूपित धर्म कह कर, उस का बोध देकर माता पिता को उक्त धर्म में स्थापित कर दे तो वह माता पिता के परम उपकार का
बदला चुका सकता है। भर्ता ( स्वामी ); कोई समर्थ धनिक पुरुष, दुःखावस्था में पड़े
हुए किसी असमर्थ दीन पुरुष को धनदान आदि से उन्नत कर दे। वह दीन पुरुष अपने उपकारी की सहायता से बढ़ कर उस के सन्मुख या परोक्ष में विपुल भोग सामग्री का उपभोग करता हुआ विचरे। इसके बाद यदि किसी समय में लाभान्तराय कर्म के उदय से वह भर्ता ( उपकारी) पुरुष निर्धन हो जाय और वह सहायता की आशा से उस पुरुष के पास (जिस को कि उसने अपनी सम्पन्न अवस्था में धन आदि की सहायता से बढ़ाया था ) जाय। वह भी अपने भर्ता ( उपकारी) के महदुपकार को स्मरण कर अपना सर्वस्व उसे समर्पित कर दे। परन्तु इतना करके भी वह पुरुष अपने उपकारी के किये हुए उपकार से उऋण नहीं हो सकता । परन्तु यदि वह उसे केवली भाषित धर्म कह कर एवं पूरी तरह से उसको बोध देकर धर्म में स्थापित कर दे तो वह पुरुष उस के उपकार से उऋण हो
सकता है। धर्माचार्य:-कोई पुरुष धर्माचार्य के समीप पाप कर्म से
हटाने वाला एक भी धार्मिक सुवचन सुन कर हृदय में