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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
है । प्रमाणांगुल उत्सेधांगुल से हजार गुणा अधिक होता है। इस लिए इस अपेक्षा से प्रमाणांगुल का योजन उत्सेधांगुल के योजन से हजार गुणा बड़ा होता है ।
( अनुयोगद्वार पृष्ठ १५७ से १७३ आगमोदय समिति ) ११६ - द्रव्यानुपूर्वी के तीन भेद:
(१) पूर्वानुपूर्वी (२) पश्चानुपूर्वी (३) अनानुपूर्वी । पूर्वानुपूवी :- जिस क्रम में पहले से आरम्भ होकर क्रमशः गणना की जाती है वह पूर्वानुपूर्वी है। जैसे धर्मास्तिकाय, अधर्मा स्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और काल । पश्चानुपूर्वी :- जिस में पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी के मिवाय अन्य क्रम होता है वह अनानुपूर्वी है। जैसे एक, दो, तीन, चार, पांच और छ: । इन छह अंकों को परस्पर गुणा करने से जो ७२० संख्या आती है। उतने ही छह द्रव्यों के भंग बनते हैं । इन ७२० भंगों में पहला भंग पूर्वानुपूर्वी का, अन्तिम भंग पश्चानुपूर्वी का और शेष ७१८ भंग अनानु पूर्वी के हैं ।
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(अनुयोगद्वार, आगमोदय समिते टीका पृष्ठ ७३ से ५७ ) १२०-लक्षणाभास की व्याख्या और भेदः - सदोष लक्षण को
लक्षणाभास कहते हैं ।
लक्षणाभास के तीन भेद:
( १ ) अव्याप्ति ( २ ) अतिव्याप्ति ( ३ ) असम्भव । अव्याप्तिः -- लक्ष्य (जिसका लक्षण किया जाय ) के एक देश