________________
श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला कार्य है । स्यूलभद्र मुनि को तरह ऐमी कठिन से कठिन क्रिया करने वाले ज्ञानी, तपस्वी, मनुष्य-लोक में दिखाई पड़ने हैं । इमलिये मैं मनुष्य लोक में जाऊं और उन पूज्य मुनीश्वर को वन्दना नमस्कार करूं यावत् उनकी उपासना करूं। (३) वह देवता यह सोचता है कि मनुष्य भव में मेरे माता पिता, भाई, बहिन, स्त्री, पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू आदि हैं। मैं वहां जाऊं और उनके मन्मुख प्रकट होऊं। वे मेरी इस दिव्य देव सम्बन्धी ऋद्धि, धुनि और शक्ति को देखें।
(ठाणांग ३ उद्देशा ३ मत्र १७७) १११-देवता की तीन अभिलापायें-- (१) मनुष्य भव (२) आर्य क्षेत्र (३) उत्तम कुल में जन्म
(ठाणांग ३ उद्देशा ३ सूत्र १७८) ११२-देवता के पश्चात्ताप के तीन बोलः
(१) मैं बल, वीर्य, पुरुषाकार, पराक्रम से युक्त था । मुझे पठनोपयोगी सुकाल प्राप्त था। कोई उपद्रव भी न था । शास्त्र ज्ञान के दाता आचार्य, उपाध्याय महाराज विद्यमान थे। मेरा शरीर भी नीरोग था। इस प्रकार सभी सामग्री के प्राप्त होते हुए भी मुझे खेद है कि मैंने बहुत शास्त्र नहीं पढ़े। (२) खेद है कि परलोक से विमुख होकर ऐहिक सुखों में
आसक्त हो, विषय पिपासु बन मैंने चिरकाल तक श्रमण (साधु ) पर्याय का पालन नहीं किया। (३) खेद हे कि मैंने ऋद्धि, रम और साता गारव (गौरव) का