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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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पाट, पाटला ) इन तीनों वस्तुओं के शोधने में, ग्रहण करने में, अथवा उपभोग करने में संयम धर्म पूर्वक संभाल रखना, इसे एषणासमिति कहते हैं ।
एषणासमिति के तीन भेद:
(१) गवेषणैषणा (२) ग्रहणैषणा (३) ग्रासैषणा | गवेषणैषणाः - सोलह उद्गम दोप, सोलह उत्पादना दोष, इन बत्तीस दोषों को टालकर शुद्ध आहार पानी की खोज करना गवेषणा है।
ग्रहणैषणाः - एषणा के शंकित आदि दस दोषों को टाल कर शुद्ध अनादि ग्रहण करना ग्रहणैषणा है ।
ग्रासैषणा :- गवेषणा और ग्रहणैषणा द्वारा प्राप्त शुद्ध आहारादि को खाते समय मांडले के पांच दोष टालकर उपभोग करना ग्रासैषणा है।
( उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २४ )
६४-करण के तीन भेद:
(१) आरम्भ ( २ ) संरम्भ (३) समारम्भ |
( ठायांग ३ सूत्र १२४ ) आरम्भ:- पृथ्वी काय आदि जीवों की हिंसा करना आरम्भ कहलाता है ।
संरम्भ:- पृथ्वी काय आदि जीवों की हिंसा विषयक मन में संक्लिष्ट परिणामों का लाना संरम्भ कहलाता है ।
समारम्भ: - पृथ्वी काय आदि जीवों को सन्ताप देना समारम्भ कहलाता है ।
( ठाणांग ३ उद्देशा १ सूत्र १२४ )