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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ११-स्थविर तीन:
(१) वयःस्थविर (२) सूत्रस्थविर
(३) प्रव्रज्या स्थविर ।। वयःस्थविर (जाति स्थविर ) साठ वर्ष की अवस्था के साधु
वयःस्थविर कहलाने हैं। सूत्रस्थविरः-श्रीस्थानांग (ठाणांग) और समवायांग सूत्र के ज्ञाता
साधु सूत्रस्थविर कहलाते हैं। प्रवज्यास्थविरः-चीस वर्ष की दीक्षापर्याय वाले साधु प्रवज्यास्थविर कहलाते हैं।
(ठाग ३ उदं शा ३ सूत्र १५६) ६२-भाव इन्द्र के तीन भेदः__(१) ज्ञानेन्द्र ( २ ) दर्शनेन्द्र (३) चारित्रन्द्र । ज्ञानेन्द्रः-अतिशयशाली, श्रुत आदि ज्ञानों में से किसी ज्ञान
द्वारा वस्तु तत्व का विवेचन करने वाले, अथवा केवल ज्ञानी
को ज्ञानेन्द्र कहते हैं। दर्शनेन्द्र:-क्षायिक सम्यगदर्शन वाले पुरुष को दर्शनेन्द्र
कहते हैं। चारित्रेन्द्रः-यथाख्यात चारित्र वाले मुनि को चारित्रेन्द्र कहते
हैं । वास्तविक-आध्यात्मिक ऐश्वर्य सम्पन्न होने से ये तीनों भावेन्द्र कहलाते हैं।
(ठाणांग ३ उद्देशा १ सूत्र ११६ ) ६३-एषणा की व्याख्या और भेदः-आहार, अधिकरण (वस्त्र,
पात्र आदि साथ में रखने की वस्तुए) शय्या (स्थानक,