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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह अमंख्यात जीविक:-जिम वनस्पति में असंख्यात जीव हों उसे
अमंख्यात जीविक वनस्पति कहते हैं । जैसे निम्ब, आम
आदि के मूल, कन्द, स्कन्ध, छाल, शाखा, अंकुर वगैरह। अनन्त जीविक:-जिम वनस्पति में अनन्त जीव हों उसे अनन्त जीविक वनस्पति कहते हैं। जैसे जमीकंद आलू आदि ।
(ठाणांग ३ मृत्र १४२ ) ७१-मनुष्य के तीन भेदः____ (१) कर्म भूमिज (२) अकम भूमिज (३) अन्तर द्वीपिक । कमभूमिजः कृषि (वेती), वणिज्य, तप, मंयम अनुष्ठान वगैरह
कर्म प्रधान भूमि को कर्म भूमि कहते हैं । पांच भरत पांच ऐगवत पांच महाविदेह क्षेत्र ये १५ क्षेत्र कर्म भूमि हैं । कर्म भूमि में उत्पन्न मनुष्य कर्म भूमिज कहलाते हैं। ये अमि.
ममि और कृषि इन तीन कर्मों द्वारा निर्वाह करते हैं । अकर्म भूमिजः-कृषि (खेती), वाणिज्य, तप, मंयम, अनुष्ठान
वगैरह कर्म जहां नहीं होने उसे अकर्म भूमि कहते हैं । पाच हैमवत, पांच हैरण्यवत पांच हरिवर्ष पांच रम्यकवर्ष पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु ये तीस क्षेत्र अकर्म भूमि हैं। इन क्षेत्रों में उत्पन्न मनुष्य अकर्म-भूमिज कहलाते हैं। यहां असि, ममि और कृषि का व्यापार नहीं होता । इन क्षेत्रों में दस प्रकार के कल्पवृक्ष होते हैं । इन्हीं से अकर्म-भूमिज मनुष्य निर्वाह करते हैं। कर्म न करने से एवं कल्पवृक्षों द्वारा भोग प्राप्त होने से इन क्षेत्रों को भोग-भूमि और यहां के मनुष्यों को भोग-भूमिज कहते हैं । यहां स्त्री पुरुष