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Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts
( Puja-Patha-Vidhāna )
१८६८ पूजामाहात्म्य
Opening :
नीर के चढाये वीर भवदघि पारहूजे चदन चढाये दाह दुरित
मिटाईये। पुष्प के चढाये पूजनीक हूजे जगत मे अक्षत चढाऐ ते अभय
पद पाईये।
Closing
पाप न कर पावै जाके जिय दया आवे धर्म को वढावे दया
कही आचरन को। ताते भव्य दया कीजे तिहुलोक सुख लीज कहत विनोदीलाल
जी तहु मरन को॥
Colophon !
इति सम्पूर्णम् ।
१८६६ पूजासग्रह
यह पूरा प्रथ अस्पष्ट है। इसे पढा नहीं जा सकता ।
१६००. पूजासग्रह
Opening :
प्रणमि सकल सिद्धनित प्रणमि सकल जिनराय । प्रणमि सकल सिद्धान्त नमि गणधर के पाय ।।
Closing .
मनवछित दायक सेव सहायक जो नर निज मन ध्यान धरे । यह दुख मिटि जाई सौख्य लहाई जिन चौवीसी पूज करें।
Colophon:
इति केतु अरिष्ट निवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ पूजा सम्पूर्णम् । इति श्री नवग्रहारिष्ट निवारक चतुर्विशति जिनपूजा
सपूर्णम् ।