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________________ २७२ २७२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrab १८९५. पार्श्वनाथ-पूज Opening : सुद्ध तीर्थ पवित्र निर्मल पुण्य हिमकर शीतले । मिलि सुगध जगत पावन जन्म दाघ विनासने । परम श्री जिनपाद पकज विगत कल्मषदूषणम् । श्री पार्श्वनाथमह यजेवर फणि लाक्षन भूषणम् । जलादिगधाक्षतचारुपुष्प, नैवेद्यसद्दीपकधूपफलार्घदान । श्री लक्ष्मिसेनादिसुरासुरेश, श्री पार्शनाथ परिष्यमामि ।। इति पार्शनाथ पूजा सपूर्णम् । Closing ! Colophon । १८६६ प्रभाती मगल Opening : जै जै जिन देवन के देवा, सुरनर सकल कर तुम सेवा । अद्भुत है प्रभु महिमा तेरी, वरणी न जाय अलप मत मेरी ।। निस्तार के तुम मुल स्वामी, बडे भागनि पाइये । जन रूपचद चिंता कहा जब सरण चरण न आइयं ।। Closing : Colophon इति श्री मगल जीत समाप्तम् । १८९७. प्रतिष्ठा-तिलक Opening : अथ बिंबजिनेन्द्रस्य कर्त्तव्य लक्षणान्वितम् । ऋज्यावत सुसस्थान तरूणाग दिगम्बरम् ॥१॥ ये केचिज्जिन ........ नरेन्द्राच्चितान् ।।१०।। Closing । Colophon: इति श्री पडिताचार्य श्री नरेन्द्रसेन विरचित प्रतिष्ठातिलक समाप्तम् ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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