SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 477
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Catalogue of Sanskrit, Prak it, Apabh ansa & Hindi Manuscripts ( Puja Patha - Vidhāna ) Closing Colophou : Opening Closing 1 Colophon Opening Closing • Colophon २७१ श्रीमज्जिनेन्द्रपादाग्रे समस्तलोकशातये । भृगारनाल निर्वाति शांतिधारा करोम्यहम् | नही है | १८९३. पार्श्वनाथ पूजा प्रानत देवलोक ते आये वामादेवी उर जगदाधार । अश्वसेनसुत नुत हरिहर हरि अक हरित तन सुख दातार ॥ जरत नाग जुग वोधि दियो तिहि सुरपद परम उदार । ऐसे पारम को तजि आरस थापि सुधारस हेत विचार ॥ पारमनाथ अनाथन के हित दारिद गिरि को वज्र समान । सुखसागर वर धन को शमि सम सब कपाय को मेघ महान || तिन को पूजे जो भवि प्रानी पाठ पढे अति आनंद आन । मोपा मन वहित सुख सब और लहे अनुत्रम निरवान ॥ इनि श्री पार्श्वनाथ पूजा समाप्तम् । १८९४ पार्श्वनाथ पूजा ह्री देव पार्श्वनाथ धरणिपतिनुत देवदेवेन्द्रवद्यम्, ह्रीकार वीजमंत्र जगदकलिमंत्र सर्वोपद्रवहारी । ॐ हा ही हूकारनार अधहरनमहा मक्तिरूप जनानाम्, व्यालीढ पादपीठ शठकमठमति माह्वय पार्श्वनाथम् । कल्याणोदयपुष्पवल्लभदय ससार सतापभृत्, तु गौ गभुजगमगलफणा माणिक्यमालायते । पायात्म्यज्जनभृ गभृ गसहितो नागेन्द्र पद्मावती, सेव्यसेवक वाछितार्थं फलद श्रीपार्श्व कल्पद्र म ॥ इति पार्श्वनाथ पूजा ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy