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Catalogue of Sanskrit, Prak it, Apabh ansa & Hindi Manuscripts ( Puja Patha - Vidhāna )
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श्रीमज्जिनेन्द्रपादाग्रे समस्तलोकशातये ।
भृगारनाल निर्वाति शांतिधारा करोम्यहम् |
नही है |
१८९३. पार्श्वनाथ पूजा
प्रानत देवलोक ते आये वामादेवी उर जगदाधार । अश्वसेनसुत नुत हरिहर हरि अक हरित तन सुख दातार ॥ जरत नाग जुग वोधि दियो तिहि सुरपद परम उदार । ऐसे पारम को तजि आरस थापि सुधारस हेत विचार ॥ पारमनाथ अनाथन के हित दारिद गिरि को वज्र समान । सुखसागर वर धन को शमि सम सब कपाय को मेघ महान || तिन को पूजे जो भवि प्रानी पाठ पढे अति आनंद आन । मोपा मन वहित सुख सब और लहे अनुत्रम निरवान ॥ इनि श्री पार्श्वनाथ पूजा समाप्तम् ।
१८९४ पार्श्वनाथ पूजा
ह्री देव पार्श्वनाथ धरणिपतिनुत देवदेवेन्द्रवद्यम्, ह्रीकार वीजमंत्र जगदकलिमंत्र सर्वोपद्रवहारी । ॐ हा ही हूकारनार अधहरनमहा मक्तिरूप जनानाम्, व्यालीढ पादपीठ शठकमठमति माह्वय पार्श्वनाथम् । कल्याणोदयपुष्पवल्लभदय ससार सतापभृत्, तु गौ गभुजगमगलफणा माणिक्यमालायते । पायात्म्यज्जनभृ गभृ गसहितो नागेन्द्र पद्मावती, सेव्यसेवक वाछितार्थं फलद श्रीपार्श्व कल्पद्र म ॥ इति पार्श्वनाथ पूजा ।