SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 476
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Closing Colophon : Opening: Closing : Colophon : Opening Closing : Colophon : Opening ॐ ह्री षट् चत्वारिंशत गुण सहितार्हत्परमेष्ठिभ्यो नम । ॐ ह्री वीर्य्यान्तराय कर्मरहित श्री सिद्ध परमेष्ठिभ्यो नमः । नही है । १८६०. पंच परमेष्ठी पूजा कल्याणकीर्तिकमलाकर सच्च चिदृज्वलमह प्रकटीकृतार्थम् । उच्च निधाय हृदिवीर जिन विशुद्ध शिष्टेष्टपच परमेष्ठीमह प्रवक्ष्ये ॥ स्फुर्जत् प्रतापतपन प्रकटीकृताशाः श्री धर्मभूषणपदावुजचुम्नावनि । कर्त्तव्यमित्युदयत सुयसोभिन दिसूरे सदतरूदपीकरणैकहेतु. ॥४॥ इति यशोन दिविरचिता पचपरमेष्ठी पूजा सम्पूर्णम् । देखे, दि० जि० ग्र० २०, पृ० १८७ । १८६१ पार्श्वनाथ कवित्त प्रभु पारसनाथ अनाथ के नाथ कि जाप जपी जगवदन की । तिहुँ लोक के लायक लायक हौ सुखदायक आणि निकदन की ॥ जग सौ भे भीत तेरे पथसो परम प्रीति । ऐसी जाकी रीति ताकौ वदना हमारी है । नही । १८९२ पार्श्वनाथ- पूजा . न्मडल चारुचतुर्विंशति कोष्टकम् । महारम्य पचवण रत्नप्रकरसभृतम् ॥२॥ و
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy