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________________ २६६ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhrarasa & Hindi Manuscripts ( Puja-Patha-Vidhāna ) जै जै श्री उपशाय नमस्ते, गुन पचीम सुखदाय नमस्ते, पदय जे धरि भक्ति नमस्ते, " - " - ॥४॥ गनुपलब्ध। Colophon : १८८७. पच-परमेष्ठी-पूजा Opening : Closing : श्रीमत निजगदेव त्रैलोक्यानददायकम् । चन्द्राक चन्द्रभ वदे स्वस्थप्रारब्धसिद्वये ।। धर्माधर्मप्रकाशनकनिपुणस्प्रैलोक्यविन्माधरो, मोहे भेशमृगेश्वरे गरिपुर्दे वाधिदेवो जिन । गसारार्णवतारकोहतमलो धर्मादिभूपो मुनिः, श्रीदेवेन्द्रसुकीतिपादनमित कुर्यात्सदा व सुखम् ।। इति श्री भट्टारक श्री धर्मभूपण विरचित परमेष्ठिपूजा समाप्ता। शुभमस्तु । Colophon १८८८ पंच-परमेष्ठी पूजा Opening : Clo ing श्रीधर श्रीकर श्रीपते भव्यन श्री दातार । श्री मरवज्ञ नमी सदा पार उतारन हार ।। सपत एक महन नव सतक सो सताईस । भादौ कृस्न त्रयोदसी बुद्धवार सो गनीस ॥ इति पच परमेष्ठी विधान सम्पूर्णम् । Colophon १८८६ पंचपरमेष्ठी-पूजा Opening : ॐ अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याथ सावुभ्यो नम , ॐ अथ अरहतदेव के ४६ गुण ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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