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__ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Sidhhant Bhavan, Arrah.
दो जलधि ढाई दीप में सव गनत मूल विराजही, पूजी असी जिनधाम प्रतिमा होहिं सुख दुख भाजही ॥१॥ देखे, ऋ० १८७८ ।। इति पचमेरु पूजा
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१८८४ पचपरमेष्ठी अर्ध्य
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श्रीमम्बिनोके निलकायमान मानुन्नतोमव्यमरोजमानः । देवेन्द्रनागेन्द्रनरेन्द्रवद्यो वदे जिनेन्द्रोविश्रुत विधाता ॥ ॐ ह्री समोपारणादिश्वराय अप्टाविमतिगुण विराजमानाय श्री मोक्षलक्ष्मीनिवासाय श्री सर्वसाधुपरमेप्टिणो मम सुप्रसन्नवर. दा भवतु ॥ इति पचपरमेष्ठी अर्घ सम्पूर्णम् ।
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१८८५. पंच-परमेष्ठी जयम्गला
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मणुयण इद ....... अट्टावर मगल । अरूहा सिद्धा आयरिया उवझाया साहुरचपमेट्ठी। एदे पच नमोयारो भवे भवे मम सुह दितु ॥७॥ इति श्री पचपरमेष्ठी जयमाल सम्पूर्णम् ।
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१८८६ पंच परमेष्टी पाठ
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प्रथम पचपद को नमो गुरुपद सीम नवाय । तुच्छ बुद्धि रचना रचौ सारद सरन मनाय ॥१॥ जै जै श्री आचार्य नमस्ते, गुन छतीम वपुधाय॑ नमस्तै । तिन पदनमिघरि ध्यान नमस्ते, होतातमाज्ञान नमस्ते ॥३॥
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