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________________ २७४ श्री जैन सिद्धार भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan Arrah, १६०१ पूजा-विधान Opening | चितवत वदन अमल चद्रोपम ताज चिंता चित होय अकामी। त्रिभुवन चद्र पाप तम चदन नमत चरन चद्रादिक नामी । तिहु जग छाई चद्रिका कीरत चिह्न चाद चिंतत शिवगामी । वदो चतुर चकोर चद्रमा चद्रवरन चद्रप्रभु स्वामी ।। राखो सभार उर कोस मे, नहि विसरो पल रकधन । परमाद चोर टारन निमित करो पास जिर गुण कथन ।। Closing : Colophon विशेष- “समे कई पूजाएं सकलित है। १६०२ पुण्याहवाचन Opening . Closing श्री शातिनाथममरासुरमतिनाथ, भास्वकिरीटमणिदीधितिपादपद्मम् । त्रैलोक्यशातिकरणं प्रणव प्रणम्य, होमोत्सवाय कुसुमाजलिमुत्क्षिपामि ।। श्री शातिरस्तु शिवमस्तु जयोस्तु नित्यमारोग्यमस्तु: तव पुष्टि समृद्धिरस्तु कल्याणमस्तु अभिवृद्धिरस्तु दीर्घायुरस्तु कुलगोत्रधन तथास्तु । इति पुण्याहवाचन सपूर्णम् । देखे, ज. सि० भ० न० 1, ऋ० ६१९ । Colophon। १६०३ पुण्याहवाचन Opening श्री निर्जरेगाधिपचक्रिपूर्व , श्रीपादपकैरहयुग्ममीणम् । श्रीवर्द्धमान प्रणिपत्य भक्त्या सकल्यरीतिकथयामि सिद्धं ॥१॥
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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