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Catalogue of Sanskrit. Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts
( Puja-Patha-Vidhana )
१८२० लघुकर्मदहन-पूजा
Opening .
Closing
तो कर जिनको नमत मुर नर सत । ने वदो वरती नया येमे सिद्ध महत । में मत हीन विवेक नही अर प्रसाद में लीन । विरता लघु जग जानककर लघु मत स्व नवीन । इति लघु कर्महन विधान मपूर्णम् । मिति अपन सुदी २ सयद् उनमें अठाईन दमकत परमानद के मुकाम जवलपुर । ठीकाना हनुमान तलाव श्री मदर व दिवाने के पक्षवाडे मुनानात।
Colophon ;
विशेष
इसके बाद कुछ भजन भी हैं।
१८२१. लघुपचकल्याणक विधान
Opening!
Closing :
वदो श्री अरहत पद मन वच तन चितधार । मगनमय जग में प्रगट पार उतारनहार ।। तुम दयाल जगनपति सिवदरमी भगवान । मिव सेवा फल दीजिये तारापति नित जान । सवत् येक पदार्थ ससगत मिलाय कर ठीक । पूरन पाठ भयो सो तव भद्र कृष्न नवमीस ।। इति लघु पचकल्याणक विधान मम्पूर्णम् ।
Colophon:
१८२२. महावीर अर्घ्य
Opening :
दिन दिन गुनकर करी सदा बढत जग्न जिनचन्द । वर्द्धमान कही हरी जज्यो में पूजो सुचकद ।।