SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 455
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४३ Catalogue of Sanskrit. Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts ( Puja-Patha-Vidhana ) १८२० लघुकर्मदहन-पूजा Opening . Closing तो कर जिनको नमत मुर नर सत । ने वदो वरती नया येमे सिद्ध महत । में मत हीन विवेक नही अर प्रसाद में लीन । विरता लघु जग जानककर लघु मत स्व नवीन । इति लघु कर्महन विधान मपूर्णम् । मिति अपन सुदी २ सयद् उनमें अठाईन दमकत परमानद के मुकाम जवलपुर । ठीकाना हनुमान तलाव श्री मदर व दिवाने के पक्षवाडे मुनानात। Colophon ; विशेष इसके बाद कुछ भजन भी हैं। १८२१. लघुपचकल्याणक विधान Opening! Closing : वदो श्री अरहत पद मन वच तन चितधार । मगनमय जग में प्रगट पार उतारनहार ।। तुम दयाल जगनपति सिवदरमी भगवान । मिव सेवा फल दीजिये तारापति नित जान । सवत् येक पदार्थ ससगत मिलाय कर ठीक । पूरन पाठ भयो सो तव भद्र कृष्न नवमीस ।। इति लघु पचकल्याणक विधान मम्पूर्णम् । Colophon: १८२२. महावीर अर्घ्य Opening : दिन दिन गुनकर करी सदा बढत जग्न जिनचन्द । वर्द्धमान कही हरी जज्यो में पूजो सुचकद ।।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy