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________________ २४८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrab Closing : अवसाने राखहु पाप नासह पहिली पूजा तुम्हरी कही। करि पूजा जिनद ही, कमलानद ही विजपाल बहु सिरनवे ।। इति श्री क्षेत्रपाल पूजा सपूर्णम् । Celophon : १८१७. क्षेत्रपाल पूजा Opening । Closing : Colophon विशेष देखे, क. १८१२ । ' इति प्रवुद्धातत्त्वस्य स्वय • • प्रादुरासनजितक्रमी । इति श्री वृहत् सहस्रनाम समाप्तम् । इसमे क्षेत्रपालपूजा और वृहत्सहस्रनाम दोनो है। बीच के बहुत से पत्र नहीं है। १८१८ क्षेत्रपाल-पूजा Opening : Closing Coledhon : प्रणम्य श्री जिनेशाना वर्द्धमान जिनेश्वरम् । पूजा श्रीक्षेत्रपालाना वक्ष्ये विघ्नविहानये ॥१॥ लक्ष्मीप्राप्तकरी कलत्रसुखकरी चौरादि शत्रूहरि, शाकिन्यादिहरी प्रशर्मसुचरी राज्यादिनिवर्द्धनी । विद्यानदघनौघनामनगरी विघ्नीघनिर्णाशनी, पूजा श्री जिनक्षेत्रस्य भवतु सपत्करी चित्कगे। इति श्री क्षेत्रपाल पूजा सम्पूर्णम् । १५१६. लब्धिविधान-पूजा श्रीवर्द्धसानजिनचद्र .. .. सतत शुभक्त्या ।।१॥ जिणगुणरयणयह हिय देवायरू केवलणाणलहैवि चिर। हुय सिद्ध निरजणु भवभयवचणु अगिणिय रिसिपु गमुजिचिरू II इति लन्धविधान पूजा। Opening : Closing : Colophon !
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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