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२११ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts
(Pija-Patha-Vidhana)
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नदीश्वर सुर जाहि लेयबहु दरब हैं । हम सकति सो नाहि इहा कर थापना । पूजे जिण ग्रह प्रतिमा है हित आपना ।। नदीश्वरजिनधाम प्रतिमा महिमा को कहै । द्यानत्त लीनो नाम यही भगत सव सुख कतै ।।१६।। इति श्री अढाई पूजा जी समाप्तम् । १६९२• बाहुबलि-पूजा
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वाहुमान जो षडवली चक्ररेन की, लखी मनित समार सवे विच्छेद की। धरो दिगवर भेष शान्तमुद्रा वरी, घानअघात जेहान ठय थिर लक्ष्मीवरी ॥ पूजन पचकुमार तणी जे नरकर, हरमत हरवलचक्रसक्रपद ते धरे । सुरगादिक सुखभोग तिरथपद पायही, धर्म अर्थलहिकाम मोक्ष सुरपायही । इति श्री पचकुमार की पूजन सम्पन्नम् । इसमे बाहुबलि पूजन और पचकुमार पूजन दोनो हैं ।
Colophon: विशेष
१६९३. बाहुबलि-मुनि-पूजा
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देखें, ऋ० १६६२। जेनर पढ़े विसाल मनोरत सुद्धसो । ते पावं थिर वास छूट ससार सो।। ऐसो जान महान जैन जिन धर्म को। देय अक्ष भडार ध्याऊ अलख ध्यान को ॥२४॥ इति श्री वाहुवल मुनी की पूजा सम्पूर्णम् ।
Colophon: