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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrab
१६६४. भैरो- राग
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भली कीनी भौर भयं ।
आए हो भवन हमारे, भली कीनी ये ॥
आस करें उरगदास, नाथ चरण तुम्हारे || भली० ॥
इति भैरौ ।
१६६५. बीस-तीर्थं कर-अर्ध्य
श्री मंदिर आदि जिनद बीसो मुखकारी । सुविदेह माँहि अभिनद पूजत नरनारी ॥ थिति समवसरन के मांहि त्रिभुवन जनं तारक । हम पूज अर्ध चढाय आनन्द के कारक ||
इह वर्तमान सुखकर दक्षिण देस महा, तह श्री गुर सुगुन भडार राजन हे सुमहा । वसुदेव जथो चितल्याय हे त्रिभुवन स्वामी, हय पूजन पद सिरनाय कीजे सिवगामी ॥१॥ इति ।
१६६६• बीस विरहमान पूजा
पूर्वापर विदेहेषु विद्यमान जिनेश्वरा । स्थापयामि अहमत्र सुद्ध सम्पक्त्तहेतवे ॥१॥
श्रीमदिरा दिप देवमजितवीर्यमुत्तमम् । भूयात् भव्यमता सौप्य स्वर्गमुक्तिसुखप्रदम् ॥
इति श्री वीनविरहमान पूजा जयमाल सम्पूर्णम् ।