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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
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१६८८. अष्टान्हिका- पूजा
आहूय सवोषडिति प्रणीत्वा ताम्यां प्रतिष्ठाप्य सुनिष्ठितार्थान् । वषटू पदेनैव च सन्निधाय नदीश्व रद्वीप जिनान्समच्चै ॥१॥ आरतिय जोवइ कम्मइ धोवइ सग्गाववग्गह लहू लहइ ।
ज जमण भावइ त सुह पावइ दीण विकासुण भासुइ ||१८|| इति अष्टान्हिकाया पूजा समाप्ता ।
देखे दि० जि० प्र० ० पृ० १६१ ।
१६८१. अष्टान्हिका - पूजा
मध्ये मडपमालिख्येद्वरतरे
पूर्व
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आयुर्वैर्ध्य
इति श्री नदिश्वर पक्तिवध पूजा समाप्ता ।
१६६० अष्टान्हिका- पूजा
तीर्थोदकं भणिसुवर्णघटोऽिपनीत, पीठे पवित्रवपुषं प्रविकल्पितीर्थं । लक्ष्मीसुता गहनवीजविदपंग, सरथापयामि भुवनाधिपति जिनेन्द्रम् ॥
नदीश्वर जिन धाम प्रतिमा महिमा को कहै |
द्यात लीन्हो नाम यहीभक्ति शिव सुख करें ॥१०॥
इति नदीश्वर द्वीप अष्टान्हिका जी की पूजा जययाला भाषा
संस्कृत सहित सम्पूर्णम् ।
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तदच्च ततः ||१|
भवता देषाईतामर्हता ॥
१६६१• अढाईपूजा
सरव पख में बडी अठाई परव है, '
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