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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah,
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१६४५ विनती
श्रीपति जिनवर करुणायतन दुखहरण तुम्हारा वाना है। मोहि देहु विमल कल्याना है ॥
मत मेरी वार अवार करो,
हो दीनानाथ अनाथ हि
इति विनती सम्पूर्णम् ।
१६४६. विनती
प्रभु आज हमारी बारी है ।
॥ टेक ॥
चलो रे मनवा मागीतु गी दर्शनकरस्या प्रभु जी का । सिद्धक्षेत्र की करो वदना दुख टलि जावै दुरगति का ॥ विषम घाट पहाड विच परवत ऊंचा मांगीतु गी का । इम पर मुनिवर मुक्ति गया है कोड निन्यानव गिनती का ॥ चलो रे ॥
उगणीस की साल जेठ सुदि करी जातरा पचसका ।
हरकत कहै सुद्ध भाव सों मेरो चरण जिनेश्वर का । चलो । 119311
इति मागीगी की विनती सपूर्णम् ।
१६४७. विनती
तुम तरणतारण भवनिवारण भविक मैन आनन्दनम् ।
श्री नाभिनंदन जगत वेदन आदिनाथ निरंजनम् ॥
मैं अधीन परवस पर विके तुम्हारे हाथ । इतनी करिको जानिये लाख बात की बात |
इति श्री विनती मपूणम् ।