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१६७ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts
(Stotra)
Closing : Colophen :
देखें, २० १६४० । इति श्री विनती सम्पूर्णम् ।
१६४२. विनती
Opening !
Closing :
त्रिभुवनपति स्वामी जी कम्नानिधानामी जी. सुनो अनरजामी मेरी विनती जी ॥१॥ दुप्टन देहु निकास नाधन को रख लीज। विनयं भूदरदाग ए प्रमु टोल न कीजै ।।१२।। इति सपूर्णम् ।
Colophon:
१६४३. विनती
Opening :
तारि तारि जिनराज मनवत्र तन विनती करो। मैं जग वह दुख पाय मुख से किम वरनन करो ॥१॥ ज्यो जाने त्यो तारि विरद आपनो जान के। हम कितना हि निहार टेक पकर तारो सही ॥१०॥
Closing :
Colophon
इति विनती सोरठा सम्पूर्णम् ।
१६४४. विनती
Opening ।
Closing
भवविधन विनारानो दुरीय मरासनो अवसान सरण तु ही । जिन मासन जान्यो इन्द्रज माग्यो पहिल पूज तुमरि करौ । सदा जिनविव धरै निज भाल सदा जिन सेणेकतरिर्महात्मा । मज्ञानमागर त्रिवद्धनचन्द्रमूर्ति जीमाज्जिनेद्रवरक प्रविराजमान । अनुपलब्ध ।
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