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Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts
(Stotra )
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Colorhon :
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Colophon.
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१५६०. पदसंग्रह
किये आराधना तेरी, हिये आनद वियापत है । तिहारे दरत के देखे सफल हो पाप नासत है ||१|| केवल मं सुकल में अचल मो में अचल में 1 जिनद वक्स रिधि सिधि में मिलि अटल रहें । इति पदसम्पूर्णम् । मितिमाघ वदी १ ।
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१५६१. पदसंग्रह
भजन तो बनता नही, ध्यान तो लगता नही मन तो सैलानी || खाने को तो अच्छा चाहिये, और ठढा पानी
चावने को पान वीडा ओर पीकदानी
ऊँच नीचे महल चाहिये साबु आसमानी ||
तीन खड के नाथ धनी तुम हरि व्याये जो परनारी ।
यह कैसे छूटे लगा कलक कुल में भारी ||
अनुपलब्ध |
१५६२ पद- विनती
सुमरण ही मैं तारे प्रभु ती ॥ सु० ॥
जिनराज छवि मनमोह लियो
महाराज सवी मन मोह लियौ ॥ टेक ॥
अनुपलव्ध ।
१५६३ पद-हजूरी
धरी धन आज की आई सरेस काज मो मन के
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