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________________ १७४ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Tain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrak, Closing : तीन लोक को रावन अधिपति लक्ष्मन हाथ मरी। द्यानत की अर्ज वीनती जामन मरन हरी ॥ पद संपूर्णम् । Colophon: Opening : १५६४. पद होली सम्मेद शिखर सुखदाई री मोको सम्मेद शिखर सुखदाई ॥ टेक ॥ वीसतीर्थंकर वीस कूट मे कर्म काटि सिद्ध पाई। तिनके चरण कमल नित वदौ मन वच तन लवलाई, पाप सब जाई पलाई ॥ १॥ चेत चेतन वेचत तुम्हे बार बार समझाई । कहत शिखर मन वच तन सेती भज ले श्री जिनराई । याहि ते शिव सुख पाई। ऐ चेतन तुम्हे चेत न आई ।। ६ ।। इति सम्पूर्णम् । Closing ! Colophon १५६५ पद्मावती अष्टोत्तर शतनाम Opening . Closing . नमोनेकातदु मारप्टतदृशभानुवे । जिनाय सकलाभीप्ट ध्यायनिःकामधेनवे । दिव्य स्तोत्रमिद महासुखकर आरोग्यसपत्करम्, भूतप्रेतपिशाचगक्षसभय विध्वसनिर्णाशनम् । आनरसते ? वाक्षित सुनिलय सर्वेपि मृत्यु जय , दिव्य व्याप्तकर कवि च जनक स्तोत्र जगन्मगलम् । इति पद्मावती अष्टोतरशतनामावली सपूर्णम् । Colophon १५६६ पद्मावती स्तोत्र Opening : श्रीमद्गीर्वाणचक्र स्फुटमुकुटनाटीदिव्यमाणिक्यमाला, ज्योतिलिाकराला स्फुरति मुकुटिकाप्टपादरविंदे ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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