SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Sidbhant Bhavan, Arrah Closing : Colophon: ... नेम सावरो से म्हारि प्रीत लगी हो। पद सपूर्णम् । सवत् १९१६ मिति चैत्र वदी १५। वायू हरलाल जी अग्रवाल गागिलगोत्रस्य पुत्र वावू वधनलाल जी तस्य पुत्र बाबू लक्ष्मीनारायन जी भार्या मधुवन वीत्री पुस्तक लिखापित आरे मध्ये सपूर्णम् । १५५०. पद Opening : Closing | Colophon ' मुझे है चाव दर्शन का ..... उबारोगे तो क्या होगा ॥ अधम उद्वार पूरन के • नीकारोगे तो क्या होगा । इति पूर्णम् । १५५१. पद Opening Closing . Colophon: शरण पिया जैओ होसी रघुवीर ॥ .. मेरी वार क्यो विलम्ब करो रे ।। नही है। १५५२ पद Opening तारण वाला न कोई ए जी का। आप तरे आप ही ए तोरे देखो चित मे जोई। लाख वात की बात है चेत न जाने सिवसुख होइ ए जी का ॥१॥ वादि न क्यो न विचारी चेतन अवहु होहु खरे । जव सुध आवे चेतन प्यारे की तब सब काज सरे । ए चतन ॥ नही है। Closing . Colophon . Opening १५५३ पद किये आराधना तेरी हिये आनद व्यापत है। तिहारे दर्शन देखें मकल ही पाप नाशत है ॥१॥
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy