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________________ १६१ Catalogue of Sanskrit, Prakrit 4pabhrani & Hindi Manscripts ( Stotra ) १५१६. नवग्रह-स्तोत्र Opening : Closing अर्कचन्द्रकुजसौम्य - - .. जिनपूजनात् ॥१॥ भद्रवाहुरूवाचेद पचमश्रुतकेवली । विद्याप्रवादत पूर्वाग्रहशाति विधि श्रुता ॥११॥ इति नवग्रह शाति स्तोत्रम् । Colophon १५१७ नवकारढाल Opening . पहिलो लोक अलोक ए ढाल छै समरी श्री नवकार मार पूरव तणो नव निध मिद्ध आग सदा ए। मह्मिा मोयी जास सकट सवि टल मिलय मनोरप मपदा ए ।। दिन-२ अधिकी संपदा ए मनवचित सुखथाय । नमुन । दया कुशल वाचक वढे धर्ममदिर गुण गाय ।।२३। नम न० ।। इति श्री नवकार चउढालीयो सम्पूर्णम् । Closing : Colophon : १५१८ नवकार-स्तोत्र Opening : Closing : Colophon; हम्तावल वोर्हता पापाद्वा मचराचरस्य जगत । मजीवन मत्रराट ..... ॥१॥ अन्यच्च " सुकृति ॥१२॥ इति पत्र नमस्कार स्तोत्रम् । १५१६ नवकारमत्र-स्तोत्र Opening . ॐ परमेष्ठी नमस्कार सार नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकर वज्र पजराभि स्मराम्यहम् ॥१॥
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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