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________________ १६२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrab Closing Colophon : Opening: Closing : Colophon बिशेष -- Opening 1 Closing Clolophon Opening यश्चैना कुरुते रक्षा परमेष्ठिपदे सदा । तस्य न स्याद्भव व्याधिरधिश्वापि कदाचन ||८|| इति नवकार मंत्र स्तोत्रम् | देखें, जै० सि० भ० ग्र०I, क्र० ७ १ । १५२० नेमिनाथ आरती आरती कीजै स्वामी नेम जिनद की । सब सुखदायक आनंद कद की ॥ आरती० ॥१॥ भैरी सरन चरन तुम आयो । भव भव मैं प्रभु होइ साहायो || आरती ॥६॥ इति भेरौजी कृत आरती । १५२१ नेमिनाथ - स्तोत्र यह पूर्णतया जीर्ण है । १५२२. निजामणि सकल जिनेश्वर देव हूमत पाये करिने सेव । निजामणि कहु सार जिन क्षपक तरे ससार ॥१॥ श्री सकलकीति गुरु ध्याउ, मुनि भुवनकीति गुणगाउँ । ब्रह्मजिनदास भणे सार ए निजामणी भवतार ||५४ || इति श्री ब्रह्मचारी जिनदास विरचिते क्षपक निजामणि सपूर्णम् । १५२३. निर्वाण-भक्ति विबुधपतिखगपनरपति घनदोरगभूत यक्षपतिमहितम् । अतुल सुख विमलनिरुपम शिवमचलमनामय प्राप्तम् ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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