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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrab
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बिशेष --
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यश्चैना कुरुते रक्षा परमेष्ठिपदे सदा ।
तस्य न स्याद्भव व्याधिरधिश्वापि कदाचन ||८|| इति नवकार मंत्र स्तोत्रम् |
देखें, जै० सि० भ० ग्र०I, क्र० ७ १ ।
१५२० नेमिनाथ आरती
आरती कीजै स्वामी नेम जिनद की ।
सब सुखदायक आनंद कद की ॥ आरती० ॥१॥
भैरी सरन चरन तुम आयो ।
भव भव मैं प्रभु होइ साहायो || आरती ॥६॥
इति भेरौजी कृत आरती ।
१५२१ नेमिनाथ - स्तोत्र
यह पूर्णतया जीर्ण है ।
१५२२. निजामणि
सकल जिनेश्वर देव हूमत पाये करिने सेव । निजामणि कहु सार जिन क्षपक तरे ससार ॥१॥
श्री सकलकीति गुरु ध्याउ, मुनि भुवनकीति गुणगाउँ । ब्रह्मजिनदास भणे सार ए निजामणी भवतार ||५४ ||
इति श्री ब्रह्मचारी जिनदास विरचिते क्षपक निजामणि सपूर्णम् ।
१५२३. निर्वाण-भक्ति
विबुधपतिखगपनरपति घनदोरगभूत यक्षपतिमहितम् । अतुल सुख विमलनिरुपम शिवमचलमनामय प्राप्तम् ।