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________________ १६० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah. १५१३. नरक-विनती Opening i आदि जिनद जु हारीय मन धरि अधिक उल्हासो जी। मन वत्र काया शुद्ध सुकीज निज अरदासो प्रभु नरकतना दुःख दोहिल ॥१॥ प्रभु पतितपावन करण भावन श्री गुणसागर भाइये ।। इह लोक सुख परलोक शिवपद स्वामि सुमिरण पाइये ।। इति श्री नरक विनति स्तवन सम्पूर्णम् । Closing Colophon १५१४. नारायणलक्ष्मी-स्तोत्र Opening • Closing . ॐ अस्य श्री नारायणहृदयस्तोत्रमत्रस्य भार्गवऋषि अनुष्टुप् छद श्रीमन्नारायणो देवता श्रीमन्नारायण प्रसादसिद्धयर्थे जपे विनियोगः । श्रीध्यायेत्वा प्रहसितमुखो कोटिवालार्कभासम्, विद्यु द्वर्णा वरवरधरा भूपणाढ्या मुशोभाम् । वीजापुर सरसिजयुग विभ्र ती स्वर्णपात्रम्, भीयुक्ता मुहुरभयदा महामय्यच्युतश्री. ॥१०॥ इति श्री अथर्वणा रहस्ये उत्तरभागे श्री महालक्ष्मीहदय सपूर्णम् । Cophon १५१५ नवग्रह-स्तोत्र Opening i Closing जगद्गुरु नमस्कृत्य श्रुत्वा सद्गुम्भापितम् । ग्रहशाति प्रवक्षामि लोकाना सुखहेतवे ।। भद्रवाहु महाश्चव पचमश्रुतकेवली । तेन विद्यानवादाचं ग्रहशातिरुदीरित ॥२१ इति नवग्रह स्तोत्रम् । देखे, जि० २० बो०, पृ० २०६ । Colophon:
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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