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१४३ Catalogus or Sinskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts
(Stotra)
जे गरम भारी रोग को है राजवैद्य समान ॥ जिनके अनुग्रह दिन कहुं नही कट फारम जजीर । ते माधु मेरे उर वनों मेगे हरी पातय पीर ॥
Closing .
फारचोरी भूधर विनवे गाव मोलेय मुनीराज । आन गन की सब पुरं मेरे मरे-मगले काज ॥ गमार विषम विदेह में विना कारन वीर । ते गधु मेरे मन यगो मे गे गे पानक पीर ।।
Colophon
प्रति गुर भगती गपूग्न ।
१४५७. गुरुभक्ति
Opening :
ते गुरु मेरे उर वर्ग ते गव जलधि जिहाज । भाप तिरं पर ताहि, अमे श्री ऋषिराज । ते गुरु ॥
Closing : Cloophon!
देग्ने, फ० १४५६ । इति गुरुस्तुति सपूर्णम् ।
१४५८. गुरुविनती
Opening : देखें, क्र. १४५७ । Closing : वे गुर चरन जहाँ धरै जग में तीरथ होय। '
सो रज मम माथे लगे भूधर मार्ग एह ।।१४॥ Colophon : ' इनि विनती सम्पूर्णम् ।