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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
१४५६ गुगावलि
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श्री अरिहत अणत गुण, सेवइ सुरनर इद । पाय कमल जसु प्रणमता, लहीये परमाणद ।।१।। श्रीखेम साख मोभता वा शाति हरष मुणिद, तसु सीस कहे जिन हर्ष मुनि गुरु नाम हो दिन-२ नाणद ॥ इति श्री गुणावली चौपई सम्पूर्णम् ।
Colophon
१४६०. गुणाष्टक
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Closing ! Colophon: विशेष
गुणाधीश योगी मुनि ... सकल जन के काम शरते ।। सुनो गाम घाते ................. आदि परमा । इति परमानन्द कृत गुणाप्टक सम्पूर्णम् । गुणाप्टक के बाद कुछ फुटकर श्लोक सकलित हैं ।
१४६१. जैनपदसग्रह
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णमो अरिहताण, णमो सिद्धाण, णमो आयरिगण । णमो उवज्झायाण, णमो लोए सव्वसाहूण ॥ एसो पच णमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो । मगलाण च सव्वेसिं पढम हवइ मगलम् ॥ ये रे सावलिया तेरा नाम जप छुट जात भव भावरिया।
- - जो भवसागर से तरिया । येरे ॥ नही है।
Closing :
Corophon:
१४६२. जिनचैत्य-नमस्कार
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मद्भक्त्या देवलोके रत्रिशशिभुवने ध्यतगणां निकाये,