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________________ १४४ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah १४५६ गुगावलि Opening । Closing i श्री अरिहत अणत गुण, सेवइ सुरनर इद । पाय कमल जसु प्रणमता, लहीये परमाणद ।।१।। श्रीखेम साख मोभता वा शाति हरष मुणिद, तसु सीस कहे जिन हर्ष मुनि गुरु नाम हो दिन-२ नाणद ॥ इति श्री गुणावली चौपई सम्पूर्णम् । Colophon १४६०. गुणाष्टक Opening . Closing ! Colophon: विशेष गुणाधीश योगी मुनि ... सकल जन के काम शरते ।। सुनो गाम घाते ................. आदि परमा । इति परमानन्द कृत गुणाप्टक सम्पूर्णम् । गुणाप्टक के बाद कुछ फुटकर श्लोक सकलित हैं । १४६१. जैनपदसग्रह Opening | णमो अरिहताण, णमो सिद्धाण, णमो आयरिगण । णमो उवज्झायाण, णमो लोए सव्वसाहूण ॥ एसो पच णमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो । मगलाण च सव्वेसिं पढम हवइ मगलम् ॥ ये रे सावलिया तेरा नाम जप छुट जात भव भावरिया। - - जो भवसागर से तरिया । येरे ॥ नही है। Closing : Corophon: १४६२. जिनचैत्य-नमस्कार Opening , मद्भक्त्या देवलोके रत्रिशशिभुवने ध्यतगणां निकाये,
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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