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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental library, Jam Sidhhant Bhavan, Arrah.
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इत्थ श्रीजिनराजमार्गविदित
अनुपलब्ध ।
१३७४. भजन
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वासर प्रत्यहम् ।
सुर तरनी परिदोहि सउरे लाघउ नरभवसा ।
आलइ जनम महारजो काई करजोरे मनमाहि विचार कि ||१|| आरम छाडी आतम रे, पीय सजम रस पूरि । सिद्ध बधू
सउजिम रमउ इमोल रे श्री विजई देवसूर वि ॥ ॥ चेतो रे चित प्राणी |१५||
इति सज्ञाय समाप्ता ।
बड़े न हुज गुन बिना, विरद वडाई पाई
कहत धतूरं सू कनक, गहनौ गढ्यो न जाई ॥१॥ कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाई इति पाइये बोराइ जगु उहि खाइ वोराई ||२॥
१३७५. भजनावली
अवश्यावश्यानी त्रिजगजननी शान्तिरूपे, तुही आधारा रासुजस तव जगमे अनूपे नहि पारावारा गुन सुजस अरू च स्वरूपे । तुही कर्त्ता धर्त्ता नृपहि पहर काहि भूपे ||१|| पनकारनि सुखहारनि दुखदुर्गति ग्रहवरने वरना ॥
ज की माय अजितहू कि तुहि काहि उपजन वरना ||७३३ || इति सम्पूर्णम् ।
१३७६. भजनावली
ध्यान मे जिनके सभी आराम होना चाहिए |
हवस सब अब की दफा सव काम होना चाहिए ||१||