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________________ १२० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental library, Jam Sidhhant Bhavan, Arrah. Closing : Colophon Opening : Closing : Colophon , Opening Closing : Colophon : Opening इत्थ श्रीजिनराजमार्गविदित अनुपलब्ध । १३७४. भजन .. B वासर प्रत्यहम् । सुर तरनी परिदोहि सउरे लाघउ नरभवसा । आलइ जनम महारजो काई करजोरे मनमाहि विचार कि ||१|| आरम छाडी आतम रे, पीय सजम रस पूरि । सिद्ध बधू सउजिम रमउ इमोल रे श्री विजई देवसूर वि ॥ ॥ चेतो रे चित प्राणी |१५|| इति सज्ञाय समाप्ता । बड़े न हुज गुन बिना, विरद वडाई पाई कहत धतूरं सू कनक, गहनौ गढ्यो न जाई ॥१॥ कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाई इति पाइये बोराइ जगु उहि खाइ वोराई ||२॥ १३७५. भजनावली अवश्यावश्यानी त्रिजगजननी शान्तिरूपे, तुही आधारा रासुजस तव जगमे अनूपे नहि पारावारा गुन सुजस अरू च स्वरूपे । तुही कर्त्ता धर्त्ता नृपहि पहर काहि भूपे ||१|| पनकारनि सुखहारनि दुखदुर्गति ग्रहवरने वरना ॥ ज की माय अजितहू कि तुहि काहि उपजन वरना ||७३३ || इति सम्पूर्णम् । १३७६. भजनावली ध्यान मे जिनके सभी आराम होना चाहिए | हवस सब अब की दफा सव काम होना चाहिए ||१||
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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