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१२१ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts
(Stotra)
Closing !
मनमानता वरदान की दातार तु ही है । तजिरी सदैव कसीस अजित को नूर ये ही है ॥ नहीं है।
Colophoni
१३७७. भजनावली
Opening
Closing ,
जै जै जै जिन चद वद दुख दहने वारा, भीर भयकर हार सार सुख सपति सारा । दीनानाथ अनाथ नाथ सव जिय हितकारी. अस रन सरन सहाय होत जन सुनन पुकारी ॥१॥ भुजचारि उदार भडार अपार । सभी सुषमार समस्त भरो वो। दरसे परसे पद पक जई। सुखधाम सुदाम ललाम सहो वो ॥ नही है।
Colophon :
१३७८ भजनावली
Opening । Closing :
करो जी मेहर जिनराज .. । अज्ञानवत अनत चेतन शुद्ध अप्पा जोवही । असरान परी क्या कहू जी... ॥ नही है।
Coiophon:
१३७६ भजन
Opening |
छल सुज सम हि भाव ही कीरत को नहि अत । भारी भारी भीर हरी जहाँ जहाँ सुमिरन्त । जिनराजदेव कीजिये मुझ दीन पं करूना । भवि वृद को अब दीजिये यह शील का शरना ।
Closing .