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११६ Catalogu: of Sanskrit, Prak, 11, Apabhrama & Hund. Manuscripts
(Stotra )
Closing :
छवी इग्यारह प्रतिमाधारी श्रावक वदित आणदकारी । इ० । सातमी आरती श्री जिनवाणी द्यानत स्वर्ग सुगति सुखदाणी ॥४॥ इ० ॥ इति आरती सपूर्णम् ।
Colɔphon
१३७१. आरती
Opening !
आरती श्री जिनवीर की सुनि पीय श्रेणिकराई । जनम जनम सुख पाइये दुरित सकल मिटि जाई ।।१।। जिन आरती कीजै । गति सहित निकलक ।। इति आरती समाप्तम् ।
Closing Colophon!
१३७२. आरती संग्रह
Closing :
आरती कीज स्वामी नेम जिनद की। सब सुखदायक आनद कद की । टेक ॥ जय-जय आरती शान तुम्हारी । तोरे चरन कमल की मै जाव बलिहारी ॥ इति आरती श्री शान्तिनाथ की सम्पूर्णम् ।
Colophon;
१३७३. अष्टक
Opening :
पद्मतीर्य निम्नगादि दिव्यमोदजीवन. कु कुमादि गधसार चंदनादिमिश्रित । कामधेनुकल्पवृक्षचित्यरत्नयंत्रकम् स्वर्गमोद सान् तं रणज ।।१।