________________
११८
श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
Closing : Colophon।
तुष्टि देशनया जनस्य मनसे ...... सतामीशिता ॥ इति श्रीदेवनद्याचार्य कृत चौवीस महाराज ..... काव्य महास्तोत्र सपूर्णम् ।
देखे, जि. २० को०, पृ० १।
जै० सि० भ० ग्र० I, ऋ० ६०२ ।
१३६८• आरती
Opening !
जै जै जै श्री आदिजिनेश्वर जुगला धरम निवारण जू। नाभिराय मरुदेवी नन्दन ससार सागर तारण जू । ज ० ॥१॥ जे पढे पढावं मन सुद्ध ध्यावं इह आरत सू सफल भया ।।१२।। इति श्री निर्मल कृत आरती समाप्तम् ।।
Closing | Colophons
१३६६. आरती
Opening
Closing :
अष्टदरबकरसब एकठा जीमना आक्डी मनाहो । जिन जी के चरण चढाइ श्री जिन पूजी जी भाव सौ ॥१॥ इयणर देवे णिय सूयसत्तिय जिणचउवीस विथा भत्तिया ए जिणवर जो अणुदिणुनापइ सो समारिनपछइ आवद्द ॥१॥ इति आरती सपूर्णम् ।
Colophoni
१३७०. आरती
Orening :
आरती श्री जिनराज तुम्हारी करम दलन सतन हितकारी ॥ आर० ॥ सुर नर असुर करत तुम सेवा तुम हो सव देवनि के देवा ॥ ॥१॥ आर० ॥