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________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramia & Hindi Manuscripts (Ayurveda ) १३४६. मदन विनोद निघटु Opening! Glosing : Colophon Opening Closing : Colophon : Opening Closing १११ वीज श्रुतीना सुधन मुनीना वीज जडाना महदादिकानाम् । आग्नेयमस्त्र भवपातकाना किंचिन्महश्यामलमाश्रयामि ||१|| यो राजा मुखतिलक कद्वारमल्लस्तेन श्रीमदननृपेण निर्मिते च प्रथेन्मदनविनोदनाम्नि सपूर्णो प० गुणग णमिश्रकोऽय || इति श्री मदनपाल विरचिते मदनविनोदे निघटो मिश्रपवर्गस्त्र योदश ||१३|| इति मदनविनोदे निघटी समाप्तम् । सवत् १९१२ का० सु० लिखापिन श्री मानसिध जी पठनाथं लिख्योस्यो लालखाजादन || १३५० नाडीप्रकाश । तीन प्रकार के है सूर्य है सो दाहिना है। पक्ष सूर्य का है । शुक्ल पक्ष चद्रमा का है । इगला चद्रमा है मोवाया है । निगला दोनो चले सो सुख मन है । कृष्ण **** ... दो नव भृकुटी श्वेत श्रवन पाँच तारका जान । तीन नाक जीवा एके का सभेद पहचान ।। अनुपलब्ध । १३५१. निदान प्रणम्य जगदुत्पत्तिस्थितिसहारकारकम् । स्वर्गापवर्गायोद्धारे त्रैलोक्ये शरण शिवम् ॥१॥ ग्रहणा समधातु सनग्निश्च समदोरमलक्रिय. प्रसन्नात्मेद्रिय मना स्वस्थामित्यभिधीयते ॥ -
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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